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    سوال نمبر: 174275

    عنوان: सूरह अत तौबा [9], आयत - 5

    سوال: अतः जब सम्मानित महीने बीत जायें, तो मिश्रणवादियों (मुश्रिकों) का वध करो, उन्हें जहाँ पाओ और उन्हें पकड़ो और घेरो और उनकी घात में रहो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ की स्थापना करें तथा ज़कात दें, तो उन्हें छोड़ दो। वास्तव में, अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है। यह आयत का जिसने भी तर्जुमा किया हे उसे मे पेह्ले कहा हे के (अतः जब सम्मानित महीने बीत जायें, तो मिश्रणवादियों (मुश्रिकों) का वध करो,) आप ह्मे ये बताए के अगर वध कर दे तो बाद मे जो कहा गया हे उस्का कुच्छ मतलब नहि हो ता हे (क्या वध के बाद यह हो सक्ता हे ? (उन्हें जहाँ पाओ और उन्हें पकड़ो और घेरो और उनकी घात में रहो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ की स्थापना करें तथा ज़कात दें, तो उन्हें छोड़ दो। वास्तव में, अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।))

    جواب نمبر: 174275

    بسم الله الرحمن الرحيم

    Fatwa ID: 221-87T/SN=04/1441

    आयत का आख़री हिस्सा शुरू हिस्से की ग़ायत है यानी आयत में जो क़त्ल वगैरा का हुक्म दिया गया है यह हुक्म उस वक़्त तक जारी रहेगा जब तक उनकी तरफ से तौबा वगैरा ना पाई जाए, अगर वह तौबा कर लेते हैं और नमाज़ पढ़ने लगते हैं तो फिर यह हुक्म उनके हक़ में बाक़ी ना रहेगा;जैसे कोई बादशाह यह हुक्म सादिर करे कि बाग़ियों को जहाँ पाओ क़त्ल करो;हाँ अगर कोई हथियार डाल दे तो फिर उसे छोड़ दो, ज़ाहिर है कि इस कलाम के शुरू और अख़ीर में कोई तआरुज़ (टकराव) नहीं है, यह एक मुहावरा है। वाज़ेह रहे कि यह आयतें उन कुफ्फार व मुश्रिकीन के हक़ में नाज़िल हुई हैं, जिन्होंने मुसलमानों के साथ मुआहिदा करने के बाद मुआहिदा तोड़ा था;लिहाज़ा मुआहिद या मुस्तामिन कुफ्फार व मुश्रिकीन को इस पर क़्यास न किया जाए।

    आयत की मज़ीद तफसील के लिये मुआरिफुल क़रआन (4/304, प्रकाशित:कराची) से मुतल्लिक़ा आयत की तफसीर देख लें, इंशाअल्लाह मुकम्मल तशफ्फी हो जाएगी।


    واللہ تعالیٰ اعلم


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