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    Question ID: 176764Country: India

    Title: ज़कात के बारे में कुछ सवाल

    Question: कुछ सवालों के जबाब कुरान और हदीस कि रौशनी में देने की गुजरिस है। 1) क्या ज़कात का पैसा ग़रीब बच्चों की दीनी और दुनियवी तालीम में खर्च कर सकते हैं। 2) क्या ज़कात का पैसा UP Madarsha board के संचलन (operation) में खर्च किया जा सकता है। 3) क्या ज़कात के पैसे से मदरसा बनवाया जा सकता है जिसमें कुराने मजीद, उर्दू, इंग्लिश, मैथ पढ़ाई जाती हो जिसमें 50% गरीब बच्चे पढते हैं जिनके माँ-बाप पढ़ाने की हैसियत नहीं रखते है। 4) क्या ज़कात के पैसे से heath Camp अवाम लगाया जा सकता है। 5) क्या ज़कात के पैसे से किसी ग़रीब का ईलाज कराया जा सकता है। 6) क्या ज़कात का पैसा बता कर किसी की मदद की जा सकती है।

    Answer ID: 176764Posted on: 01-Sep-2020

    Fatwa ID: 659-134T/L=08/1441

     

    (1)ज़कात अदा होने के लिए तमलीक शर्त है, तमलीक के बगैर ज़कात अदा नहीं होती;लेहाज़ा दीनी या दुनयवी तालीम के वासते अगर ग़रीब छात्रों को ज़कात की रक़म देकर मालिक बना दिया जाए तो ज़कात आदा हो जाएगी।

    (2)मदरसा चलाने का मतलब अगर यह हो कि इस से शिक्षकों वगैरा की तनख्वाह (वेतन) दी जाए या मदरसा की इमारत वगैरा तैयार की जाए तो यह दुरुस्त नहीं, और अगर मतलब कुछ और हो तो उसकी वज़ाहत के साथ दोबारा सवाल भेझें।

    (3)ज़कात की रक़म से मदरसा बनाने की गुंजाइश नहीं है।

    (4)ज़कात अदा होने के लिए तमलीकुल-ऐन शर्त है, तमलीकुल मन्फअत से ज़कात अदा नहीं होती, लेहाज़ा हेल्थ कैंप से अगर ग़रीब आदमियों को दवा वगैरा दी जाऐं तो दवा की आम क़ीमत के बक़द्र ज़कात अदा हो जाएगी, और अगर ग़रीब आदमियों के खून वगैरा के जांच का इंतेज़ाम किया जाए तो इस से ज़कात अदा नहीं होगी;अलबत्ता इसके जाइज़ होने की यह सूरत हो सकती है कि जांच वगैरा के वासते एक फीस मुक़र्रर (तैय) किया जाए फिर जांच कराने के बाद ग़रीब आदमियों की इजाज़त से उनका फीस ज़कात की रक़म से अदा कर दी जाए, इस सूरत में ज़कात अदा हो जाएगी।

    (5)अगर ग़रीब आदमी को इलाज के लिए ज़कात की रक़म का मालिक बना दिया जाए तो ज़कात अदा हो जाएगी, इसी तरह इलाज के बाद उसके ज़िम्मे डॉक्टरों की जो फीस या दवा की जो क़मीत लाज़िम हुई है अगर उसकी इजाज़त से ज़कात की रक़म से फीस या क़ीमत अदा कर दी जाए तब भी ज़कात अदा हो जाएगी;अलबत्ता उनकी तरफ से वकील बने बगैर खुद से ज़कात अदा कर देना काफी न होगा, इस से ज़कात अदा न होगी।

    (6)ज़कात अदा होने के लिए देने वाले के दिल में ज़कात की नीयत होना काफी है, ग़रीब आदमी को ज़कात बता कर देना ज़रूरी नहीं बल्कि अगर हदिया (गिफ्ट) के नाम से भी दी जाए तो भी ज़कात अदा हो जाती है बल्कि अगर बताने में ग़रीब आदमी को शरमिंदगी महसूस हो तो न बताना ही बेहतर है।

    وفي الدر المختار: ويشترط أن يكون الصرف (تمليكا) لا إباحة كما مر (لا) يصرف (إلي بناء) نحو مسجد . (الدر المختار مع رد المحتار: 2/344) وفي الفتاوي الهندية: ولا يجوز أن يبني بالزكاة المسجد، وكذا القناطر والسقايات، وإصلاح الطرقات، وكري الأنهار والحج والجهاد وكل ما لا تمليك فيه، ولا يجوز أن يكفن بها ميت، ولا يقضي بها دين الميت كذا في التبيين . (الفتاوي الهندية: 1/188) وفي الدر المختار: أما دين الحي الفقير فيجوز لو بأمره، ولو أذن فمات فإطلاق الكتاب يفيد عدم الجواز وهو الوجه نهر. (الدر المختار مع رد المحتار: 2/345) وفي حاشية الطحطاوي: ولا يشترط علم الفقير أنها زكاة ولو دفعها إلي صبيان أقربائه برسم عيد أو إلي مبشر أو مهدي الباكورة جاز إلا إذا نص علي التعويض . (حاشية الطحطاوي علي المراقي، ص: 715) 

    Darul Ifta,

    Darul Uloom Deoband, India