عبادات >> صلاة (نماز)
سوال نمبر: 163270
جواب نمبر: 163270
بسم الله الرحمن الرحيم
क़ज़ा नमाज़ अदा करने का जो तरीक़ा बयान किया गया है वह किसी ज़ईफ़ ह़दीस में भी मज़्कूर नहीं, इसको इरशादे नब्वी कह कर बयान करना बहुत ख़तरनाक बात है। ह़दीस में है कि जो शख्स मेरे ऊपर झूट बोले (यानी मेरी तरफ ऐसी बात मन्सूब करे जो मैंने नहीं कही) उसको अपना ठिकाना जहन्नम बना लेना चाहिये। मुसलमानों को ऐसी बे-सनद बात बयान करने और उसको बिला तह़क़ीक़ शेयर करने से बचना लाज़िम है। क़ज़ा नामज़ अदा करने का कोई मख्सूस तरीक़ा नहीं है जिस तरह नामज़ पढ़ी जाती है उसी तरह़ क़ज़ा नमाज़ भी पढ़ी जाऐगी। और जितनी नमाज़ें छूटी हुई हैं सबकी क़ज़ा लाज़िम है। और छोड़ने का जो गुनाह हुआ है उसके लिये तौबह व इस्तिग़फार भी ज़रूरी है।
واللہ تعالیٰ اعلم
دارالافتاء،
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